प्रश्न : अपनी परिस्थिती को महत्व न देते हुऐ कोई इन्सान अपना लक्ष कैसे निर्धारित कर सकता है।
श्री श्री रवि शंकरजी : कुछ पल के लिये एकांत में बैठ कर सोचें। बाकी सारी चीजें दूर रखें। देखें अपने आप को क्या चहिये, अपने आप से पूछें मुझे क्या चाहिये। और उसके बाद जो भी लक्ष सामने आयेगा उसे पकड़ कर रखें। आप का जो भी सपना, लक्ष या मंजिल होगी उस पर परिस्थिती की गहरी छाप पडेगी। आप अपनी एक मंजिल के लिये काम कर रहे है और अचानक कुछ हो जाता है। आपके किसी प्रियजन की तबियत ठीक नही है या किसी का अपघात हो जाता है। तब उस वक्त आप को लचिला होना पडता है। आप यह नही कह सकते कि मेरा लक्ष तो वह है मुझे जाना होगा। आपको सामने जो भी परिस्थिती है उससे निपटना होगा। क्योंकि जीवन गहन है,यह एक सीधी रेखा कि तरह नही है। इस जीवन की गहनता में अपने लक्ष को बनाऐ रखना ये दृढ़ संकल्पता है। जब आपके जीवन मे भक्ती और ज्ञान उपजता है तो आप यह आसानी से कर सकते हैं। ज्ञान और भक्ती यह दो महत्वपूर्ण बाते हैं जो जीवन को सहज बनाती हैं। आप में से कितनों को ऐसा महसूस हो रहा हैं कि इस मार्ग पर आने के बाद चीजें अपने आप सहज घट रही हैं। अब कोई मुश्किल नही है।
जय गुरुदेव
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