प्रश्न : गुरूजी, कहा जाता है कि हमें हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए परन्तु मेरा मन सदैव नकारात्मक हो जाता है | इस को कैसे संभालूं ?
श्री श्री रवि शंकरजी : अपने शरीर को शुद्ध बनाइये | थोड़ा त्रिफला चूर्ण दो तीन बार सप्ताह में ले | यदि आपकी पाचन क्रिया साफ़ है, तो आपका मस्तिष्क भी ठीक से काम करेगा | यदि आपको कब्ज़ हो तो आपके विचार अस्त व्यस्त हो जाते हैं | शरीर की शुद्धि के लिए सप्ताह में कम से कम एक बार त्रिफला लेने से भी चलेगा | आयुर्वेदिक दवाइयाँ शरीर को शुद्ध करती हैं | प्राणायाम प्राण, या जीवन शक्ति को शुद्ध करता है | भजन और सत्संग मन को शुद्ध करते हैं | ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है और उसे और तीव्र बनाता है | दान धन को शुद्ध करता है |
अपनी आमदनी का दो प्रतिशत सामाजिक कार्यों के लिए अलग रखना चाहिए | यदि आप एक हज़ार रुपये कमाते हैं और सब अपने पर ही व्ययित कर देते हैं तो यह सही नहीं है | कम से कम दो, तीन या चार प्रतिशत भी सामजिक कार्यों के लिए अलग रखना चाहिए | इस्लाम ज़कात को प्रतिपादित करता है, जिस में आपको अपनी आमदनी का निम्नतम दस प्रतिशत समाज पर खर्चना होता है | यह हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी कहा गया है कि हमारी आमदनी का बीस प्रतिशत समाज सेवा के कार्यों पर लागत होना चाहिए | अब, बीस प्रतिशत आपके लिए बहुत अधिक और असाध्य हो जाता है | इसलिए, आपको निम्नतम दो तीन प्रतिशत तो बचाना चाहिए | आज के कलयुग में यदि आप इतना भी करते हैं तो ये भी अच्छा होगा |

ऐसा ही हल्दी के साथ भी है | आप इसके बिना भोजन नहीं बना सकते | हर स्थान पर लोग, कश्मीर से कन्याकुमारी तक, हल्दी का प्रयोग करते हैं | तीस साल पहले भारत में लोग कहते थे कि हल्दी मात्र एक रंगद्रव्य है और इसका कोई खाद्य गुण नहीं है | अमरीका ने इस पर शोध किया और साबित किया कि यह एक है और इसमें कैंसर के रोकथाम की शक्तियाँ हैं | और इस प्रकार हमनें फिर से इसका प्रयोग करना आरम्भ किया | प्राचीन समय में कैंसर की कोई घटनायें नहीं होती थीं परन्तु आजकल सब जगह आपको कैंसर से पीड़ित लोग मिलेंगे | पहले हल्दी का बहुत प्रयोग होता था | इसे आयुर्वेद में व्यवस्थापक कहा जाता था | इसलिए हमें पुनः आयुर्वेद की ओर जाना होगा | इस में बहुत से स्वास्थ्य उपाए हैं जिनका विश्व आज बहुत सम्मान करता है |
जय गुरुदेव
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