प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मैं जानता हूँ, कि मेरे माता पिता मुझे बहुत प्रेम करते हैं, मगर वे बहुत स्नेहशील नहीं हैं| वे अपना स्नेह वैसे नहीं दिखाते जैसा कि मैं चाहता हूँ कि वे दिखाएँ| मैं किस तरह इन भावनाओं को महसूस करूँ और उनके व्यवहार से परेशान न होऊं?
श्री श्री रवि शंकरजी : इसे बहुत अधिक महत्व न दें! आगे बढ़े! जीवन में ऐसी घटनाएं होती हैं, ऐसे मौके आते हैं| ऐसी नकारात्मकता आती है, मधुरता भी आती है, तो क्या! इनमें से कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहेगा, वे एक पल के लिए आती हैं, और चली जाती हैं| जैसे मैंने कहा, ज्ञान या योग एक ऐसा मार्ग है, जिसके द्वारा आप कष्ट से बच सकते हैं, भय से बच सकते हैं, और अप्रियता से भी बच सकते हैं| जब जीवन में ये नहीं होते, तब आपको पीड़ा दिखती है| इसीलिए, ईसाई धर्म में कहा है, कि कष्ट बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि कष्ट के ही द्वारा आप अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं| जब आपको कष्ट होता है, तभी आप को समझ आती है, और तभी आप कोई पाठ सीखते हैं| पूर्व में, वे कहते हैं, कि कष्ट से बचा जा सकता है और उसकी कोई ज़रूरत नहीं है| जीवन आनंद है! क्या आप जानते हैं क्यों? क्योंकि, ज्ञान, योग और ध्यान ऐसे तरीकें हैं, जिनसे आने वाले कष्ट से बचा जा सकता है| इसलिए, अगर आप योग और ध्यान जानते हैं, तो पीड़ा से बचना मुश्किल नहीं है|
- जय गुरुदेव
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