प्रश्न: प्यारे गुरूजी, मैं आध्यात्मिक पथ पर बढ़ रहा हूँ, इसके क्या लक्षण हैं? मैंने अपना पहला कोर्स दस साल पहले किया था | मैंने दस एडवांस कोर्स किये हैं, और मैं टीचर भी हूँ | लेकिन मुझे अभी भी क्रोध आता है | कभी कभी अपने व्यवहार को देखकर तो मुझे ऐसा लगता है, कि जो लोग कोई साधना नहीं करते, वे मुझसे लाख गुना बेहतर हैं | कृपया मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकरजी : आप सब कुछ गलत समझ बैठे हैं | आप सोचते हैं, कि सिर्फ ध्यान ही आपका सारा काम कर देगा? आप सिर्फ ध्यान का मज़ा ले रहें हैं | अगर आप ज्ञान के रस में इतने डूबे हैं, तो आप व्याकुल क्यों होंगे? आप सोचते हैं कि सिर्फ कुछ समय चुप रहने से आपका काम हो जायेगा और आप ज्ञान और बुद्धिमत्ता को भूल जाते हैं | ज्ञान आपके सम्मुख खड़ा है और कह रहा है, ‘लोग और परिस्थितियां जैसे भी हैं, उन्हें स्वीकारें’, लेकिन आप वह कर नहीं रहें हैं | मैं कितनी बार कह चुका हूँ, कि क्रोध दोषहीनता से आपकी आसक्ति का चिन्ह है | अगर आप वैरागी है, तो आप इतने चिंतित क्यों होंगे?
सुनिए, आप भले ही दस एडवांस कोर्स कर लें, और भले ही कितनी बातें सुन लें, लेकिन अगर आप उन बातों को अपने अंदर नहीं ले रहें हैं, तो इसमें न तो कोर्स या ध्यान की, और न ही ज्ञान और बुद्धिमत्ता की कोई गलती है | यह तो उस रबड़ के सूट की तरह हो गया, जिसे स्कूबा डाइविंग के समय लोग पहनकर समुद्र में उतरते हैं | आप भले ही पानी में उतरे हैं, लेकिन जब बाहर आते है, तो सूखे होते है | पानी की एक बूँद भी आपके शरीर में नहीं गयी है, क्योंकि आप उस गीले सूट में थे |
इसी तरह, आप दस चाहे बारह एडवांस कोर्स कर लीजिए, लेकिन अगर आपके अंदर वैराग्य नहीं है, जिसके बारे में आप बहुत बार सुन चुके हैं, तब आपको क्रोध आएगा ही |
विवेक, बुद्धि और वैराग्य; ज्ञान का दूसरा स्तंभ | अगर वह नहीं है, तो आप क्रोधित और व्याकुल होने के लिए बाध्य हो ही जायेंगे, आप अधिकारात्मक और ईर्षालु होंगे ही | कोई वैराग्य नहीं है | मैंने कितनी बार कहा है, ‘सो हम, तो क्या!’ आपने ‘तो क्या!’ नहीं सुना |
बहुत बार आप उसे यूँही मान लेते हैं | ‘ओह! तो क्या हुआ, ये तो मैंने सुना है, ठीक है’ | अभी तो आप बस बैठते हैं और ध्यान करते हैं, और बाद में जाते हैं, और कभी याद नहीं रखते | याद रखिये, उसे अपने अंदर समा देने दीजिए | ज्ञान को दोष मत दीजिए | यह आपकी अक्षमता है, कि आप उसे जी नहीं पा रहें हैं, उसे ले नहीं पा रहें हैं और अपनी आत्मा में उसे समा नहीं पा रहें हैं |
क्या आप समझ रहें है, कि मैं क्या कह रहा हूँ? आप यह नहीं कह सकते, ‘मेरे ये सब बंधन हैं, और मैं फिर भी आध्यात्मिक रहूँगा’, नहीं! आध्यात्मिकता हमारे दोषहीनता से ग्रस्त मन को बचाने के लिए है | आध्यात्मिकता माने केंद्रित रहना, स्थित रहना | दस एडवांस कोर्स करने के बाद भी आपको गुस्सा आ रहा है | ज़रा सोचिये, अगर आपने एक भी एडवांस कोर्स नहीं किया होता, तब आपकी हालत क्या होती? मेरे प्यारे, वह भी देखिये!
और अगर एडवांस कोर्स आप पर असर नहीं कर रहा है, तो आप वापिस बार बार क्यों आ रहें हैं? फिर आपने किया ही क्यों? आपको एक कर के कहना चाहिए था, कि यह तो असर नहीं करता, बात खत्म! अगर आप बार बार वापस आ रहें हैं, मतलब कहीं न कहीं तो उसका असर हो रहा है | आप उससे फायदा तो उठा रहें हैं |
और ज़रा सोचिये, अगर आपने ये सब कुछ न किया होता, तब कितनी बड़ी आफत होती | आपको इस बारे में बैठकर सोचना चाहिए | ‘मान लो, मैंने कभी बेसिक कोर्स नहीं किया होता, और कभी ध्यान नहीं किया होता, तब मेरी हालत क्या होती?’
जय गुरुदेव
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