प्रेम की पराकाष्ठा - Isha Vidya

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Wednesday, July 18, 2018

प्रेम की पराकाष्ठा

नारद भक्तिसुत्र - 9

*निरोधस्तु लोक वेदव्यापारन्यासः*

निरोध-किसको रोंके ? क्या रोकना चाहिए जीवन में?
तब कहते हैं, लोक वेद व्यापार न्यासः। बहुत काम में चौबीस घंटे हम फँसे रहें, तब मन में कभी प्रेम का अनुभव, एहसास हो ही नहीं सकता। यह एक तरकीब है। आदमी को प्रेम से बचना हो तो अपने आप को इतना व्यस्त कर दो- कहते है न- साँस लेने की फुरसत नहीं -फिर मरे हुए के जैसे रहते हैं। सुबह उठने से लेकर रात तक काम में लगे रहो, लगे रहो, लगे रहो-जीवन उसी में समाप्त हो जाता है। पैसे बनाने की मशीन बन जाओ। सुबह से रात तक पैसे के बारे में सोचते रहो, या कुछ और ऐसे सोचते रहो, काम करते रहो, शांत कभी नहीं होना, तब जीवन में प्रेम या उससे संबंधित कोई भी चीज़ की झलक तक नही आएगी। या हम काक्ष से तो छुट्टी लेकर बैठ जाते है मगर कुछ़ क्रिया-कलाप शुरु कर देते हैं -माला लेकर जपते रहो, या लगातार कुछ क्रियाकांड करते चले जाओ, किताबें पढ़ते जाओ, टेलीविज़न देखते जाओ, कुछ तो करते जाओ , तब भी परम प्रेम के अनुभव से, अनुभूति से, वंचित रह जाते हो। *लोक वेद व्यापार न्यासः*। ठीक ढंग से लौकिक और धार्मिक जो भी तुम करते हो न, ठीक ढंग से इन  सबसे विश्राम पाना। तब तुम प्रेम का अनुभव कर सकते हो। जो व्यक्ति धर्म के नाम लगातार कर्मकांड में लगा रहता है, उसके चेहरे पर भी प्रेम झलकता नहीं है। आपने गौर कीया है? नहीं तो कितने सारे मंदिर है,जग़ह हैं, जग़ह-जग़ह लोग पूजा करते हैं, पाठ करते हैं, इनमें ऐसा प्रेम टपकना चाहिए- एसा नहीं होता। पूजा करते हैं,इधर घंटी बजाते रहते हैं, उधर क्रोध-आक्रोश, वेग-उद्वेग -इसलिए नए पीढी़ के लोगों का पूजा-पाठ से विश्वास उठ गया-क्यों?  माँ-बाप को देखा इतना पूजा-पाठ करते हुए, जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया, जैसे के तैसे ही रहते हैं। पूजा-पाठ का कोई दोष नहीं है, मगर हम बीच में विश्राम लेना भूल गये हैं। हर पूजा-पाठ की प्रक्रिया में यह है कि" *पहले आचमन करो, फिर प्राणायम करो, फिर ध्यान करो*।" ध्यान की जगह हम एक श्लोक पढ़ लेते हैं और मन को शांत होने ही नहीं देते, वेद व्यापार न्यासः। निरोध करना हो तो लौकिक और वैदिक -दौनों व्यापारों से मन को कुशलतापूर्वक निवृत्त करना है।  *बहुत कुशलता से करना है यह काम। ऐसा नहीं कि पूजा-पाठ सब बेकार है, ऐसा कहकर एक तरफ कर दो इसको, इससे भी नहीं होगा*। लोक वेद व्यापार न्यासः -ढंग से इनमें विश्राम पाना;कुशलता पूर्वक।  यह कुशलता क्या है, और आगे कैसे चलें, इसके बारे में कल विचार करेंगे |

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