योग वशिष्ठ - 26
*(ब) योग-वाशिष्ठ के सिद्धांत (कल से आगे...)*
(९६) जिसका चित्त अचित्त हो जाय, और कर्म-फल की भी चिंता न रहें , वह "ज्ञानी" है।
(९७) जो जानने योग्य वस्तु को जानकर कर्म करने में वासना रहित हो जाय , वही ' ज्ञानी' है।
(९८) जिसके मन की इच्छाएं शांत हो गयी हैं और जिसकी शीतलता बनावटी नहीं है, वास्तविक है, उसे 'ज्ञानी' कहते हैं।
(९९) जिसका ज्ञान ऐसा है जिससे पुनर्जन्म होने की संभावना नहीं है , वही 'ज्ञानी' है।
(१००) सैंकड़ों जन्मों में अनुभूत होने के कारण बहुत दृढ़ हुई संसार भावना का क्षय बिना बहुत समय तक (ज्ञान का) अभ्यास और योग किये नहीं होता।
(१०१) बिना अभ्यास के आत्मा-भावना का उदय नहीं होता।
(१०२) उसी का चिंतन करना, उसी का वर्णन करना , एक-दूसरे को उसी का ज्ञान कराना , उसी एक के विचार में तत्पर रहना (ब्रह्म-ज्ञान का ) 'अभ्यास ' कहलाता है।
(१०३) अभ्यास करते रहने से समय पाकर अवश्य शांति का अनुभव होता है।
(१०४) संसार में रहते हुए संसार से पार उतरने की युक्ति का नाम 'योग' है।
(१०५) किसी के लिए योग-मार्ग कठिन है, किसी के लिए ज्ञान-मार्ग कठिन है। मेरी राय में तो ज्ञान निश्चय का अभ्यास ज्यादा सुगम है।
(१०६) *चित्त को शांत करने के दो उपाय हैं। एक 'योग' और दूसरा 'ज्ञान'। योग का अर्थ है 'चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ' और ज्ञान का अर्थ है "यथास्थिति वस्तु,व्यक्ति और परिस्थिति को जानना "*
जय गुरुदेव
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