प्रेम की अभिव्यक्ति - Isha Vidya

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Friday, July 20, 2018

प्रेम की अभिव्यक्ति

*||नारद भक्ति सूत्र - 13||*

*प्रेम की अभिव्यक्ति* 

 _अन्याश्रयाणाम् त्याग:_। 
एक पर आश्रित। 
उस पर पूर्ण दृढ़ विश्वास।
*लोक वेदेषु तदनुकूलाचरणम् तद् विरोधिषूदासिनता।।*
इसका मतलब यह नहीं है कि प्रेम में कोई नियम नहीं है, विधि नहीं है, जो चाहे सो कर सकते हो, मतलब हम औरों को भी मुसीबत में डाल दें।
प्रेम तुम्हारी आत्मा है, आत्मसाक्षी बनकर चलो, चाहे दुनिया के काम हो या धार्मिक काम हों। 
आप हरिद्वार में जाते हो , सब पंडे घेर लेते हैं-ये करो, वो करो, यहाँ पर तुम इतनी दक्षिणा चढा़ओ नहीं तो ऐसा हो जाएगा, संकल्प करा देते हैं। 
आप वहाँ बहुत बेचैन हो जाते हैं-"अरे यह करना ही पडेगा"।

 फिक्र मत करो , भगवान कोई सजा़ देने के लिए नहीं बैठा है वहाँ ऊपर, डण्डा लेकर। 
उनसे अनन्यता महसूस करो। तेरा सखा है, पिता है, माँ है, इस तरह से सम्बन्ध को महसूस करो। 
वे हमारे अपने हैं। 
जो अपने होते हैं वे हमें दण्ड देंगे? 
_लोक वेदेषु तदनुकूलाचरणम्_
_तद् विरोधिषूदासिनता_।

आचरण में प्रेम के विरुद्ध कुछ भी दिखे उस पर उदासीन मत हो।
 प्रेम कोई भावुकता नहीं है।

 "अरे बेटा, मैं तेरे बिना जी नहीं सकता, तू मेरे पास ही बैठ।" यह कोई प्रेम है? 
तुम प्रेममय हो। 
तुम बने ही उस वस्तु से जिसको प्रेम कहते हैं।
समाज़ के नियमों को सन्मान देना, उन नियमों पर चलना। मनमानी नहीं करना। 
प्रेम के नाम से हम मनमानी करने लगते है।
 अगला सूत्र-
 *भवतु निश्चयदाढर्यादूर्ध्वम् शास्त्ररक्षणम्*।।
- ठीक है भक्ति में , प्रेम में, तुम शास्त्र से, एक विधि से परे हो, फिर भी अच्छ़ा है दुनिया में एक नियम पर चलना। 
शास्त्र माने क्या? 
अनुभवी व्यक्ति जिस बात को सिद्ध कर चुके हैं, जिस बात की सामान्यता को दिखलायें हैं, उसको शास्त्र कहते हैं।
ऐसै-ऐसे करने से ऐसा होता है ।
 हर विद्या एक शास्त्र है।
 गणित शास्त्र है। तुमने तो नहीं बनाया गणित को। 
भूगोल शास्त्र है, विज्ञान शास्त्र है। 
इसी तरह अध्यात्म भी शास्त्र है, अनुभवी व्यक्तिओ की वाणी। 
हजारों साल  परिशीलन करके एक संग्रहण किया, उस संग्रहित ज्ञान को शास्त्र कहते हैं। उसको सन्मान देना। 
तुम्हारी खुद की कोई कल्पना हो सकती है, कोई भ्रम हो सकता है। 
शास्त्र के पथ पर चलो-
*अन्यथा पातित्या शङ्क्या*।।
नहीं तो गिरने की सम्भावना है।मनमानी करने से गिरने की संभावना है।
दुनिया में भी ऐसे चलना है।

*||जय गुरूदेव||*

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