समर्पण - Isha Vidya

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Monday, July 9, 2018

समर्पण

प्रश्न : गुरुदेव , कृपया समर्पण के बारे में बताएँ , मुझे लगता है कि समर्पण मुझे थोडा अनभिज्ञ बना रहा है , जब मैं बीते वक़्त कि ओर देखता हूँ , तो लगता है कि जब भी मुझे कोई निर्णय लेना होता था या उस पर काम करना होता था तब मैं सोचता था की सब कुछ तो गुरुदेव संभाल रहे हैं तो वो ही सब करेंगे , इसलिए तब उस अवस्था में मैं कुछ करने की बजाय ,ये विश्वास करता था कि जो होना है वो स्वयं ही हो जायेगा | तो कृपया बताएँ कि मुझे किस प्रकार का समर्पण करना चाहिए जिस से कि मैं अनभिज्ञ नहीं बनूँ ?

श्री श्री रविशंकरजी : देखिये दोनों संकल्प ( एक दृढ निश्चय या कुछ कार्य करने की इच्छा ) और समर्पण साथ साथ चलते हैं | एक बार आपने अपनी तरफ से १००% कर दिया तब आपके करने को कुछ बचता ही नहीं , तब आप समर्पण कर दीजिये | अपना कार्य पूरा कर देने के बाद आप उस कार्य के फल की इच्छा को समर्पित कर सकते हैं , लेकिन कुछ भी काम नहीं करने से आपको कुछ नहीं मिलेगा | हमें जो भी करना है उसको १००% करना चाहिए और तब हमें उस कार्य के पूर्ण होने की या फल की इच्छा को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए | हमें समर्पण करते वक़्त ये भाव मन में रखना चाहिए कि हमारे लिए जो भी सर्वोत्तम होगा वो हमें मिल जायेगा | अपनी तरफ से सारे प्रयत्न , सारी मेहनत करने के उपरांत उस कार्य के फल की इच्छा को ईश्वर को समर्पित कर दीजिये , आप समझ रहे हैं , मैं क्या कह रहा हूँ ? आपको ये नहीं करना है कि बस आराम से बैठ गए और सोचा ,"अरे , मैंने तो समर्पण कर दिया है , अब सब काम अपने आप हो जायेगा |"

वो पूर्णता की अवस्था , सिद्धावस्था , धीरे धीरे आती है , उसको आने में वक़्त लगता है | जब आप अपनी साधना में इतने मज़बूत , इतने सिद्ध हो जाते हैं कि कोई राग , कोई बैर नहीं बचता और न ही कोई इच्छाएं बचती | तब उस अवस्था को नैष्कर्म सिद्धि ( बिना कुछ कार्य किये किसी चीज़ को पा लेने की क़ाबलियत ) कहते हैं |

ये वो अवस्था है जब बिना कुछ प्रयत्न किये ही आपकी सब कार्य , ससब इच्छाएं स्वयं ही पूर्ण हो जाती हैं , और जब तक ये अवस्था नहीं आती तब तक हमें अपने कार्य करते रहना चाहिए | सिद्धावस्था में आप भक्ति में इतने गहरे उतर जाते हैं कि आपको किसी बात की प्यास नहीं रहती और न ही किसी प्रकार के प्रयत्न करने पड़ते हैं | सोचने से पहले ही आपकी सब इच्छाएं पूरी हो जाती हैं | यहाँ कितने लोगो ने ऐसा अनुभव किया है ? (श्रोताओ में बहुत से भक्तो ने हाथ उठाया) देखिये , ऐसा सच में हो ही रहा है |

अब हम कैसे इस अवस्था को पा सकते हैं ? जैसे जैसे हम आध्यात्म के पथ पर गहरे उतारते जाते हैं , हम और ज्यादा संतोष में आते हैं | जितने संतोषी हम होते हैं उतने ही ज्यादा हम इन सब सिद्धियों को पाने के योग्य होते जाते हैं | सिद्धि को पाना कोई भूतकाल या भविष्य की बात नहीं है , ये ऐसा है जिसे अभी वर्तमान में पाया जा सकता है | ये सिद्धियाँ अभी ढकी हुई हैं , और इन पर से पर्दा धीरे धीरे हट रहा है | और जैसे जैसे पर्दा और हटेगा , ये सब योग्यताएं हम में सहज ही आने लगेंगी |

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