प्रश्न : ईश्वर क्या है?
श्री श्री रवि शंकरजी : - एक उपनिषद में ईश्वर का बहुत सुन्दर वर्णन है। एक बार एक लड़का अपने पिता के पास गया और पूछा - ईश्वर क्या है?पिता ने उत्तर दिया ‘भोजन ईश्वर है, क्योंकि भोजन से सबका पालन होता है।’ तो बालक गया और कई महिनों तक इसके बारे में सोचा, भोजन के बारे में सब कुछ समझा और अपने पिता के पास वापिस लौटकर फिर पूछा ‘ईश्वर क्या है?’
पिता ने कहा ‘प्राण ईश्वर है|’ लड़का गया, चिंतन किया, प्राण के बारे में सबकुछ समझा कि कैसे प्राण उर्जा शरीर के अंदर और बाहर आ-जा रही है, प्राण कितने प्रकार के होते हैं और प्राण से सम्बंधित सभी प्रयोगों को पढ़ा| वह पुनः अपने पिता के पास लौटा और पूछा ‘ईश्वर क्या है?’
पिता ने बच्चे का तेजस्वी चेहरा देखा और कहा ‘मन ब्रह्म है, मन ईश्वर है' | पहले की तरह लड़का चला गया और तब तक मनन किया जब तक कि उसने अंतिम परमानंद (bliss) को नहीं प्राप्त कर लिया|
बच्चे ने अपने पिता से कभी शिकायत नहीं की कि उसे बताया गया था कि ‘भोजन ईश्वर है',लेकिन यह परम सत्य नहीं है। वह
उत्तर को समझकर वापिस आया और प्रश्न को पुनः पूछा| यह शिक्षा की प्राचीन विधि रही - एक
कदम से अगले कदम पर लेजाने की।
पहले भोजन, फिर प्राण, फिर मन, फिर अंतरात्मा, फिर परम ब्रह्म-परमानंद|
परमानंद ही देवत्व है| तुम्हारा अस्तित्व आकाश की तरह सर्व व्यापक है| फिर पिता ने बच्चे से कहा ‘तुममें, मुझमें और अनंत आत्मा में कोई अंतर नहीं है| हम सब एक हैं| स्वयं, गुरु और शाश्वत ऊर्जा अलग-अलग नहीं हैं| सभी एक ही तत्त्व से बने हैं| यदि तुम उन वैज्ञानिकों से बात करो, जो string theory यां परमाणु भौतिकी (quantum physics) पढ़ते हैं, वे वही कहेंगे, जो उपनिषदों में कहा गया है| उपनिषदों में यह हज़ारों साल पहले कहा गया था ‘ईश्वर स्वर्ग में कहीं बैठा हुआ कोई व्यक्ति नहीं है, अपितु वह हर जगह मौजूद है| वह सर्वव्यापी (omnipresent) और सर्वशक्तिमान (omnipotent) है| वह है और उसकी शक्ति से तुम भी बने हो, प्रत्येक चीज़ बनी है| 
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