योग के अनुशासन - 1 - Isha Vidya

SPONSOR 2


Thursday, July 26, 2018

योग के अनुशासन - 1

पतंजलि योग सूत्र
प्रथम चरण
योग के अनुशासन - 1

"अथयोगानुशासनम्"
शासन का अर्थ है - नियम! वे नियम; जिन्हें कोई अन्य व्यक्ति तुम्हारे ऊपर आरोपित करता है और अनुशासन का अर्थ है, वे नियम; जिन्हें तुम स्वयं अपने ऊपर लगाते हो। दोनों में अंतर है। शासन; वह नियम अथवा अधिनियम है, जो राजा अथवा समाज द्वारा तुम पर आरोपित होते हैं, परन्तु अनुशासन, वे नियम एवं विधान है, जिन्हें तुम स्वयं अपने ऊपर लगाते हो।

योग को अनुशासन की संज्ञा क्यों दी गई? इसकी आवश्यकता को कब और कहाँ महसूस किया गया?

प्यास लगने पर एवं पानी पीने की इच्छा होने पर तुम ऐसा कदापि नहीं कहते कि यह नियम है कि प्यास लगने पर पानी पीना होगा अथवा "मैं एक अनुशासन के तहत पानी का सेवन करता हूँ।" भूख लगने पर क्या तुम कहते हो की "मैं भोजन करने के अनुशासन का पालन कर रहा हूँ।" इसी प्रकार प्रकृति का आनन्द उठाते समय कोई अनुशासन नही होता एवं मनोरंजन का आनन्द लेते समय, अनुशासन की आवश्यकता नहीं होती।

अनुशासन की आवश्यकता हमें कब होती है?

जब किसी कार्य को करने में पहले कदम (चरण) पर ही आनन्द की प्राप्ति नही होती हो। एक शिशु ऐसा कभी नहीं कहता कि मैं जब भी अपनी माँ की ओर देखता हूँ तब उनकी ओर दौड़ने के अनुशासन का पालन करता हूँ।
अनुशासन का प्रश्न वहाँ उठता है जहाँ आरंभ में तनिक भी आकर्षण न हो। है न? जब तुम्हे यह ज्ञात हो की किसी भी कार्य को करने पर उसका फल अत्यंत लाभदायक होगा किँतु आरंभ करने में उसमे कोई आकर्षण नही है। तब तुम्हे अनुशासन की आवश्यकता होती है।

जब तुम स्वयं में दृढ़ एवं अटल हो, जब तुम आनन्द में हो, शांत हो, प्रसन्न हो, तब किसी अनुशासन की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इस समय तुम पहले से ही स्वयं में स्थापित हो अन्यथा हमारा चित्त सदा ही भटकता रहता है और तभी अनुशासन की जरूरत पड़ती है। अनुशासन से यह मन शान्त और आत्मकेंद्रित होता है और अन्ततः इसका फल; परमानंद की प्राप्ति करता है।

No comments:

Post a Comment