प्रश्न : प्रिय श्री श्री, अहंकार का उद्देश्य क्या है? ऐसा लगता है कि जितने भी नकारात्मक गुण हमें कष्ट देते हैं, उन सब के लिए अस्तित्व का यही स्तर जिम्मेदार है| क्या इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं?
श्री श्री रवि शंकरजी : हाँ, अहंकार के सकारात्मक पहलू हैं| कौन कहता है कि यह सिर्फ बुरा है? इसका अच्छा पहलू है कि यह अपने साथ चुनौती लेकर आ सकता है, एक दृढ़ संकल्प, कर्म करने की इच्छा| जितने भी कर्म चुनौतीपूर्ण होते हैं, जिनमें दृढ़ संकल्प और जोश चाहिए, वे सब अहंकार के द्वारा होते हैं| एक ऐसा भी अहंकार हो सकता है, सर्व समावेशी है;‘सब मेरे हैं’, यह भी अहंकार है| और, ‘सिर्फ मैं ही अच्छा हूँ’, भी एक प्रकार का अहंकार है, मगर वह उतना अच्छा अहंकार नहीं है|
इसलिए, अहंकार को देखने के बहुत से तरीके हैं| अगर आप अहंकार को परिभाषा देते हैं कि वह है, ‘सहजता का अभाव’, या फिर ‘आपके और दूसरे के बीच की दीवार’, तब ऐसे अहंकार से आपको छुटकारा पाना चाहिए| यह बीज के ऊपर का वह आवरण है, जो बीज के अंकुरित होने तक आवश्यक है, और जैसे ही बीज अंकुरित हो जाता हैं, तब उसके चारों ओर का आवरण या झिल्ली उसके अंकुरित होने का रास्ता बनाता है| उसी तरह तीन साल की उम्र तक अहंकार आता है, और तब तक रहता है जब तक आप परिपक्व नहीं हो जाते| आप किशोरावस्था से वयस्क हो जाते हैं, तब तक वह आपकी रक्षा करता है| उसके बाद वह धीरे धीर रास्ता बनाता है एक विस्तृत विचारधारा, व्यापक हृदय, बड़ा दिल और विश्वव्यापी पहचान के लिए| दूसरे प्रकार का अहंकार है, सिर्फ पहचान| तब आपको पहचान की ज़रूरत होती है|
ये सभी पहचान, ‘मैं एक ही दिव्यत्व से सम्बंधित हूँ’, ‘मैं एक ही मानव जाति से संबद्ध हूँ’, ‘मैं धर्म के लिए खड़ा हूँ’, अहंकार है| यह अच्छा है कि आपने अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहें हैं, और आप अज्ञानता के खिलाफ़ लड़ रहें हैं, और आप कह रहें है, ‘मैं यहाँ हूँ ताकि कोई भूखा ना रहे, किसी को कोई अभाव ना रहे’| वह समर्पण भी अहंकार का ही हिस्सा है|ऐसा अहंकार कहलाता है सात्विक अहंकार|
भगवद गीता में तीन प्रकार के अहंकार का विवरण किया है, सात्विक, राजसिक और तामसिक अहंकार| यह बहुत रोचक है ; आप कभी इसके बारे में पढ़िए|
जय गुरुदेव
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