श्री श्री कहते हैं :
जय गुरुदेव
जैसे एक जलती ज्योति ही कोई और ज्योति जला सकती है, वैसे ही जिसके पास है, वही दे सकता है, जो स्वयं मुक्त है, वही मुक्त कर सकता है, जो स्वयं प्रेम है, वही प्रेम अंकुरित कर सकता है। जानो कि तुम प्रेम हो ।
बिना त्याग के कोई प्रेम, कोई ज्ञान और सच्चा आनंद नहीं हो सकता। त्याग तुम्हें पवित्र बनाता है, पवित्र बनो।
स्वयं अध्ययन कर के, देख कर, खोखले और खाली होकर, तुम एक माध्यम बन जाते हो - तुम परमात्मा और अपने गुरु का अंश बन जाते हो। तुम देवत्व की उपस्थिति को महसूस कर सकते हो। सभी स्वर्गदूत और देवता, हमारी चेतना के विभिन्न रूप खिलने लगते हैं।
जय गुरुदेव
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