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*🌺पतंजलि योग सूत्र🌺*
*🌲प्रथम चरण🌲*
*🌳योग के अनुशासन🌳*
🌹🌹5⃣🌹🌹
*कल से आगे.....*
*"द्रष्टू: स्वरूपेऽव्स्थानम।"*
यहाँ विशुद्ध रूप से स्थायित्व को प्राप्त करना ही, योग है। दृष्टा का, अपनी वास्तविक प्रकृति के स्वरूप को स्वीकार कर, उसमे टिक जाना ही योग है।
जीवन पर्यन्त तुम जिस आनंद, परमानंद, चिर आनंद का अनुभव ज्ञानपूर्वक अथवा अज्ञानपूर्वक करते हो, उसी का तो अर्थ है - दृश्य के स्वरूप में स्थापित हो जाना अन्यथा, अतिरिक्त समय तो तुम मस्तिष्क की अन्य गतिविधियों में उलझे रहते हो अर्थात उन्ही से एकाकार रहते हो।
*"वृत्ति सारूप्य मितरत्र।"*
अन्य समय तो तुम मन की कल्पनाओं में ही खोये रहते हो।
चित्त की पाँच वृत्तियों पर नियंत्रण :-
*"वृत्तय: पंचतय्य: क्लिष्टाक्लिष्टा:।"*
चित्त की कुछ वृत्तियाँ ऐसी है जो बहुत कष्ट पहुँचाती है; अनेक समस्याऐं उतपन्न करती है एवं कुछ वृत्तियाँ ऐसी भी है जो तनिक भी क्लेश उतपन्न नही करती, वे बाल सुलभ है। किंतु निम्न पाँच वृत्तियाँ पीड़ा देती है। ये है - प्रमाण, विपर्याय, विकल्प, निद्रा एवं स्मृति।
चेतना स्वयं को पाँच प्रकार से अभिव्यक्त करती है। इसे चित्त कहो, मन कहो अथवा चेतना, एक ही बात है। ये पाँच वृत्तियाँ है।
जय गुरुदेव
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