प्रश्न : गुरूजी, अध्यात्म के मार्ग पर कौन सा दृष्टिकोण बेहतर है, वैराग्य या जोश ?
श्री श्री रवि शंकरजी : दोनों आवश्यक हैं| इसीलिए, भगवान श्री कृष्ण ने पहले अर्जुन में जोश जगाया, यह कहकर कि, ‘देखो, लोग क्या कहेंगे? वे कहेंगे, ‘यह कितना बड़ा डरपोक है’| ‘अपमान की जिंदगी जीने का क्या फ़ायदा; बेहतर होगा कि मर जाओ’| फिर उन्होंने कहा, ’क्या एक क्षत्रिय के लिए यह उचित है कि वह इस तरह बैठा रहे? एक तरफ तुम रो रहे हो, काँप रहें हो और दूसरी तरफ तुम बड़े ज्ञानी की तरह बात कर रहे हो| क्या धर्म के बारे में बात करते हुए कोई काँपता है?’
भगवान श्री कृष्ण ने आगे कहा, ’तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो? मैं तो तुम्हें बहादुर और शूरवीर समझता था| और तुम ऐसे व्यवहार कर रहे हो? तुम कह रहे हो, कि तुम्हें यह सब कुछ नहीं चाहिए!’
ऐसे तानों के साथ भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के अंदर के जोश और ज्वाला को जागते हैं|
फिर भगवान श्री कृष्ण आगे कहते हैं, ‘यह सब कुछ नहीं है| ‘अनित्यम असुख़म लोकं’! यह दुनिया नश्वर है, यह सदैव नहीं रहती| सब कुछ विनाश की ओर जा रहा है| इसलिए दुनिया से कोई उम्मीद नहीं रखना|’
ऐसा कहते हुए, भगवान श्री कृष्ण धीरे से अर्जुन को वैराग्य में ले आये|
उन्होंने जोश और वैराग्य दोनों जगाए, और फिर कहा, ‘अब जाओ और लड़ो’| अर्जुन में उन्होंने कितना ज़बरदस्त लड़ने का जोश जगाया| उत्साह में, काम करने का जोश हो; वैराग्य के साथ उसे जोड़कर उन्होंने जो मार्ग दिखाया वह अद्भुत था!
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