सब - कुछ जो तुम्हें मिल रहा है, क्या तुम उनको स्वीकार करते हो या उनका प्रतिरोध करते हो? यदि तुम प्रतिरोध नहीं कर सकते, तो तुम स्वीकार भी नहीं कर सकते! सभी चीज़ों को तुम स्वीकार नहीं कर सकते और न ही सबका प्रतिरोध!
मन में आने वाले सभी विचारों को तुम स्वीकार नहीं करते। जब तुम किसी विचार को स्वीकार करते हो, इसका मतलब वह तुम्हें अच्छा लगा और तुम उसके अनुसार कार्य करते हो। मन में उठने वाले सभी विचारों के अनुसार यदि तुम कार्य करोगे, तो तुम या तो पागलखाने में पहुँचोगे या जेल में। तो कुछ विचारों का तुम प्रतिरोध करते हो या उन पर ध्यान नहीं देते और कुछ विचारों का स्वागत करते हो। जीवन में विवेचना की आवश्यकता है। स्वीकार और प्रतिरोध जीवन के अंग हैं। विस्तार और उन्नति के लिए स्वीकृति ज़रूरी है, पालन - पोषण के लिए प्रतिरोध आवश्यक है।
#प्रश्न : गुरुजी, लेकिन जिसका हम प्रतिरोध करते हैं, वह तो और भी दृढ़ होता जाता है ?
#श्रीश्री : क्या बात करते हो? जुकाम का प्रतिरोध करने पर जुकाम टिकता नहीं। यदि तुम्हारे शरीर में कोई प्रतिरोध ही नहीं, तुम जीवित नहीं रह सकते। तुम्हारा शरीर कुछ चीजों का प्रतिरोध करता है और कुछ का स्वागत।
प्रतिरोध जहाँ कमज़ोर होता है, स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है, विरोध बना ही रहता है। प्रबल प्रतिरोध विरोध को मिटाता है। प्रबल प्रतिरोध से शक्ति, समता, शौर्य और समाधि की प्राप्ति होती है। यह तुममें एक योद्धा की शक्ति लाता है। कुछ भी तुम्हें प्रलोभित नहीं कर सकता, कोई बाधा रोक नहीं सकती और विजय ✌ बिना लड़े ही होती है। जहाँ पूर्ण स्वीकृति हो या प्रबल प्रतिरोध, वहाँ विजय ✌ बिना संघर्ष के प्राप्त होती है।
#श्रीश्री
जय गुरुदेव ।
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