प्रश्न : प्रिय गुरूजी, योगसार उपनिषद में आपने कहा है कि भगवान अवैयक्तिक है| गुरु दोनों है, व्यक्तिगत और ईश्वरीय| क्या आप इसके बारे में हमें और बता सकते हैं? भगवान अवैयक्तिक कैसे हैं?
श्री श्री रविशंकरजी : हाँ, यह दोनों है| जैसे आप तत्व है, फिर भी अरूप है| आपके शरीर का रूप है पर क्या आपके मन का कोई रूप है? नहीं| उसी प्रकार, यह प्रत्यक्ष ब्रह्माण्ड भगवान का रूप है और अप्रत्यक्ष चेतना, अंतरिक्ष एक अरूप रूप है|
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